होम और कार लोन पर फिक्स ब्याज दर का विकल्प: आरबीआई का निर्देश

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होम और कार लोन पर महत्वपूर्ण खबर:भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल ही में बैंकों को एक सख्त निर्देश दिया है कि वे होम, कार और एजुकेशन लोन जैसे लंबी अवधि के लोन पर फिक्स ब्याज दर का विकल्प अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराएं। आरबीआई ने यह स्पष्ट किया है कि ग्राहक अपने लोन के लिए फ्लोटिंग (परिवर्तनीय) और फिक्स (अपरिवर्तित) ब्याज दरों के बीच चुनाव कर सकते हैं। यह नियम सभी प्रकार के लोन पर लागू होगा, चाहे वह छोटी अवधि का असुरक्षित लोन हो या बड़ी अवधि का सुरक्षित लोन।

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होम और कार लोन पर महत्वपूर्ण खबर
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फ्लोटिंग और फिक्स ब्याज दर: समझें अंतर

फ्लोटिंग रेट में ब्याज दर समय-समय पर बदलती रहती है, जो बाजार की स्थितियों पर निर्भर करती है। इसके विपरीत, फिक्स रेट में ब्याज दर लोन की पूरी अवधि के लिए स्थिर रहती है।
फ्लोटिंग रेट का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जब बाजार में ब्याज दरें घटती हैं, तो ग्राहक की ईएमआई कम हो जाती है। दूसरी ओर, फिक्स रेट में ब्याज दरें स्थिर रहती हैं, जिससे ग्राहक को भविष्य में बढ़ती ब्याज दरों से बचाव मिलता है।

आरबीआई का निर्देश: ग्राहकों को फिक्स रेट का विकल्प क्यों चाहिए?

आरबीआई ने अपने पुराने सर्कुलर की स्पष्टता बढ़ाने के लिए यह सुनिश्चित किया है कि सभी वित्तीय संस्थान फिक्स रेट का विकल्प उपलब्ध कराएं।
इसके पीछे कारण यह है कि ग्राहकों को अपनी वित्तीय योजना बनाने में आसानी हो।


फिक्स रेट का लाभ:

  • बजट प्रबंधन में मदद।
  • ब्याज दरों में अचानक वृद्धि से सुरक्षा।

बैंकों का तर्क: लागत बढ़ने का डर

बैंकों ने आरबीआई के इस निर्देश पर चिंता जाहिर की है। उनका तर्क है कि लंबी अवधि के फिक्स लोन से उनकी लागत बढ़ जाएगी क्योंकि बाजार में ब्याज दरों में बदलाव का प्रभाव बैंकों को सहना पड़ेगा।

उदाहरण: फिक्स बनाम फ्लोटिंग रेट पर ईएमआई का प्रभाव

यदि कोई ग्राहक 20 लाख रुपये का होम लोन 12 साल की अवधि के लिए लेता है, तो फिक्स और फ्लोटिंग रेट पर ईएमआई और कुल चुकाई गई राशि का अंतर कुछ इस प्रकार है:

ब्याज दरमासिक ईएमआईकुल चुकाई गई राशि
फिक्स रेट₹30,556₹44,00,000
फ्लोटिंग रेट₹23,902₹34,41,825

यह आंकड़े बताते हैं कि फ्लोटिंग रेट पर ब्याज दरें घटने से ग्राहक को अधिक बचत हो सकती है।

आरबीआई के नियम: ग्राहकों को मिलेगा अधिक पारदर्शी अनुभव

आरबीआई ने यह भी कहा है कि:

  • बैंकों की जिम्मेदारी होगी कि वे ग्राहकों को यह बताएं कि ब्याज दरों में बदलाव से उनकी ईएमआई और कुल लागत पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
  • लोन स्टेटमेंट हर तिमाही जारी करें: इसमें ब्याज दरों में बदलाव के कारण मूलधन और ब्याज पर पड़े प्रभाव की जानकारी होनी चाहिए।

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